Monday, August 28, 2023

سایۂ زلفِ تار میں نورِ سحر فسردہ ہے 
تیرا جمال دیکھ کر تابِ قمر فسردہ ہے 

باغ سبھی مہک اٹھے ، مرغِ چمن چہک اٹھے 
فصلِ بہار میں مگر اک گلِ تر فسردہ ہے

عہدِ فراقِ یار میں جان مری فسردہ تھی 
اب سرِ شامِ وصلِ یار میری نظر فسردہ ہے

اے مرے دل تو ہی بتا ، کیوں رہِ عشق پر چلا
کس کا قصور ہے بھلا ، اب تو اگر فسردہ ہے 

جب سے ہے فیصلہ ہوا ترکِ تعلقات کا  
تب سے ترے خیال کی راہگزر فسردہ ہے

سمرنِ دل گرفتہ کو روکتے کیوں ہو ناصحو 
سوئے صنم کدہ اُسے جانے دو گر فسردہ ہے


साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-तार में नूर-ए-सहर फ़सुर्दा है
तेरा जमाल देख कर ताब-ए-क़मर फ़सुर्दा है

बाग़ सभी महक उठे, मुर्ग़-ए-चमन चहक उठे
फ़स्ल-ए-बहार में मगर इक गुल-ए-तर फ़सुर्दा है

अहद-ए-फ़िराक़-ए-यार में जान मिरी फ़सुर्दा थी
अब सर-ए-शाम-ए-वस्ल-ए-यार मेरी नज़र फ़सुर्दा है

ए मिरे दिल तू ही बता, क्यूँ रह-ए-इश्क़ पर चला
किस का क़सूर है भला, अब तू अगर फ़सुर्दा है

जब से है फ़ैसला हुआ तर्क-ए-त'अल्लुक़ात का
तब से तिरे ख़्याल की राहगुज़र फ़सुर्दा है

सिमरन-ए-दिल-ए-गिरफ़्ता को रोकते क्यूँ हो नासेहो
सू-ए-सनम-कदा उसे जाने दो गर फ़सुर्दा है


شکوۀ تغافل

اے نازِ نو بہار ! ترے منتظر ہیں گل اب کیا ہوا کہ باغ میں آتی نہیں ہے تو اے عندلیبِ گلشنِ جان و دل و نظر اب موسمِ بہار میں گاتی نہیں ہے تو اے...