Sunday, March 14, 2021

خوابوں کے ، ستاروں کے کاشانے کہوں گا میں
اِن آنکھوں کو میری جاں ، مے خانے کہوں گا میں

ख़्वाबों के, सितारों के काशाने कहूँ गा मैं
इन आँखों को मेरी जाँ , मय ख़ाने कहूँ गा मैं

اُن اجڑے مکانوں کو ، دردوں کے ٹھکانوں کو 
دل جن کو کہو گے تم ، ویرانے کہوں گا میں 

उन उजड़े मकानों को , दर्दों के ठिकानों को
दिल जिन को कहो गे तुम , वीराने कहूँ गा मैं

اُن بیتے زمانوں کو ، اُن کہنہ جہانوں کو
ادوار کہو گے تم ، افسانے کہوں گا میں

उन बीते ज़मानों को , उन कोहना जहानों को
अदवार कहो गे तुम , अफ़साने कहूँ गा मैं 

 اِن سوختہ جانوں کو ، گستاخ جوانوں کو 
عشاق کہو گے تم ، دیوانے کہوں گا میں 

इन सोख़्ता जानों को , गुस्ताख़ जवानों को
उश्शाक़ कहो गे तुम, दीवाना कहूँ गा मैं

اِن غنچہ دہانوں کو ، اِن شیریں زبانوں کو
ساقی کہو گے تم پر مستانے کہوں گا میں 

इन गुंचा-दहानों को, इन शीरीं ज़बानों को
साक़ी कहो गे तुम पर मस्ताने कहूँ गा मैं

سوچوں کی اڑانوں کو ، اِن شوخ بیانوں کو
 اشعار کہیں گے سب ، نذرانے کہوں گا میں

सोचों की उड़ानों को , इन शोख़ बयानों को
अशआर कहें गे सब , नज़राने कहूँ गा मैं

الفت کے فسانوں کو ، افسردہ ترانوں کو 
سمرن غمِ جاناں کے پیمانے کہوں گا میں

उल्फ़त के फ़सानों को , अफसुर्दा तरानों को
सिमरन ग़म-ए-जानाँ के पैमाने कहूँ गा मैं

Friday, March 5, 2021

ہمارے لب پہ نہ آئی کبھی شکایتِ غم
عزیز تر ہمیں بزمِ جہاں سے خلوتِ غم

 हमारे लब पे न आई कभी शिकायत-ए-ग़म
अज़ीज़-तर हमें बज़्म-ए-जहाँ से ख़ल्वत-ए-ग़म

ترے بچھڑنے سے پہلے بھی میں اداس ہی تھا
مگر خبر نہ تھی مجھ کو کہ کیا ہے شدتِ غم

तिरे बिछड़ने से पहले भी मैं उदास ही था 
मगर ख़बर न थी मुझ को कि क्या है शिद्दत-ए-ग़म

کِیا نہ پند و نصیحت نے کچھ اثر مجھ پر
حیات اپنی بنا ڈالی ہے حکایتِ غم 

किया न पंद-ओ-नसीहत ने कुछ असर मुझ पर
हयात अपनी बना डाली है हिकायत-ए-ग़म

سناؤ مت مری جاں نغمۂ نشاط ہمیں 
خوش آ گئی ہے ترے عاشقوں کو صحبتِ غم

सुनाओ मत मिरी जाँ नग़मा-ए-नशात हमें
ख़ुश आ गई है तिरे आशिक़ों को सोहबत-ए-ग़म

طلوعِ صبح پہ وہ شادماں نہیں ہوتے
تمام رات میسر ہو جن کو لذتِ غم 

 तुलूअ-ए-सुब्ह पे वो शादमाँ नहीं होते
तमाम रात मयस्सर हो जिन को लज़्ज़त-ए-ग़म

مری حیاتِ حزیں کا یہی ہے سرمایہ
! متاعِ درد ، زرِ رنج اور دولتِ غم 

मिरी हयात-ए-हज़ीं का यही है सरमाया
मताअ-ए-दर्द, ज़र-ए-रंज और दौलत-ए-ग़म

ہر ایک صاحبِ علم و ہنر نے قصد کِیا
بیاں کسی سے مگر ہو سکی نہ وسعتِ غم

हर एक साहिब-ए-इल्म-ओ-हुनर ने क़स्द किया
बयाँ किसी से मगर हो सकी न वुसअत-ए-ग़म

فضا میں خوشبو ، گلوں پر نکھار ہے سمرن 
تمہارے چہرے پہ کیوں اب تلک ہے رنگتِ غم ؟

फ़ज़ा में ख़ुशबू, गुलों पर निखार है सिमरन
तुम्हारे चेहरे पे क्यों अब तलक है रंगत-ए-ग़म

شکوۀ تغافل

اے نازِ نو بہار ! ترے منتظر ہیں گل اب کیا ہوا کہ باغ میں آتی نہیں ہے تو اے عندلیبِ گلشنِ جان و دل و نظر اب موسمِ بہار میں گاتی نہیں ہے تو اے...