Monday, January 8, 2024

شکوۀ تغافل

اے نازِ نو بہار ! ترے منتظر ہیں گل
اب کیا ہوا کہ باغ میں آتی نہیں ہے تو

اے عندلیبِ گلشنِ جان و دل و نظر
اب موسمِ بہار میں گاتی نہیں ہے تو

اے مہرِ دل کشا کی شعاعِ حیات بخش
اب مجھ کو اپنا جلوہ دکھاتی نہیں ہے تو

اب مژدۂ بہار و نویدِ سحر تو کیا
دکھ کی کوئی خبر بھی سناتی نہیں ہے تو

آزردہ دل ہیں لالہ و نسرین و یاسمن
بادِ صبا کو رنگ پہ لاتی نہیں ہے تو

اب کشتِ مہر و عشق ہے ویران و تشنہ کام
بن کے گھٹا زمین پہ چھاتی نہیں ہے تو

کیا بات ہے کہ اب لبِ گوہر فشان سے
شہد و شکر کی نہر بہاتی نہیں ہے تو

وہ جس حدیثِ شوق سے تھا بزم میں خروش
اب وہ حدیثِ شوق سناتی نہیں ہے تو

وہ دورِ رقصِ بادہ و ایامِ سر خوشی
ذکر اُن کا اب زبان پہ لاتی نہیں ہے تو

سمرن کے ساتھ میکدۂ رنگ و نور میں
اب زندگی کا جشن مناتی نہیں ہے تو

رقصان و نغمہ خوان و بصد نازِ دلبری
اب اِس طرح سے بام پہ آتی نہیں ہے تو

اب کس طرح میں تجھ کو سناؤں بیانِ دل
اب دل جلوں سے ربط بڑھاتی نہیں ہے تو

جانے وہ کیا ہوئی تری طبعِ وفا شعار
وعدے ہزار کر کے نبھاتی نہیں ہے تو

سمرن کو بس یہ ایک ہی شکوہ ہے جانِ جاں
اب اس کو جامِ عشق پلاتی نہیں ہے تو

ए नाज़-ए-नौ-बहार तिरे मुंतज़िर हैं गुल
अब क्या हुआ कि बाग़ में आती नहीं है तू

ए अंदलीब-ए-गुलशन-ए-जान-ओ-दिल-ओ-नज़र
अब मौसम-ए-बहार में गाती नहीं है तू

ए मेह्र-ए-दिल-कुशा की शु'आ-ए-हयात-बख़्श
अब मुझ को अपना जलवा दिखाती नहीं है तू 

अब मुझ़्दा-ए-बहार-ओ-नवीद-ए-सहर तो क्या 
दुख की कोई ख़बर भी सुनाती नहीं है तू

आज़ुरदा-दिल हैं लाला-ओ-नसरीन-ओ-यासमन
बाद-ए-सबा को रंग पे लाती नहीं है तू

अब किश्त-ए-मेह्र-ओ-इश्क़ है वीरान-ओ-तिश्ना-काम
बन के घटा ज़मीन पे छाती नहीं है तू

क्या बात है कि अब लब-ए-गौहर-फ़शान से
शहद-ओ-शकर की नहर बहाती नहीं है तू 

वो जिस हदीस-ए-शौक़ से था बज़्म में ख़ुरोश
अब वो हदीस-ए-शौक़ सुनाती नहीं है तू

वो दौर-ए-रक़्स-ए-बादा-ओ-अय्याम-ए-सरख़ुशी
ज़िक्र उन का अब ज़बान पे लाती नहीं है तू

सिमरन के साथ मैकदा-ए-रंग-ओ-नूर में
अब ज़िंदगी का जश्न मनाती नहीं है तू 

रक्सान-ओ-नग़्मा-ख़्वान-ओ-ब-सद-नाज़-ए-दिलबरी
अब इस तरह से बाम पे आती नहीं है तू 

अब किस तरह मैं तुझ को सुनाऊँ बयान-ए-दिल
अब दिल-जलों से रब्त बढ़ाती नहीं है तू

जाने वो क्या हुई तिरी तबअ-ए-वफ़ा-शिआर
वाअदे हज़ार कर के निभाती नहीं है तू 

सिमरन को बस ये एक ही शिकवा है जान-ए-जाँ
अब उस को जाम-ए-इश्क़ पिलाती नहीं है तू


Tuesday, January 2, 2024

تو نے اتنے دیے آزارِ محبت مجھ کو
اب نہ ہوتی ہے ترے رنگوں پہ حیرت مجھ کو 

قلزمِ حسن سے وہ موجِ بلا خیز اٹھی
ساحلِ دل پہ نظر آئی قیامت مجھ کو 

رتجگے ، سوزِ جگر ، لذتِ گریہ زاری
دے گیا طرفہ تحائف غمِ فرقت مجھ کو 

میرے چہرے پہ کبھی ایسی اداسی تو نہ تھی  
جانے کیا کر گئی آلام کی شدت مجھ کو 

اُن کے ہر لطف پہ آئی مجھے اللہ کی یاد 
راس آئی نہیں اصنام کی الفت مجھ کو

گو یہ اک خانۂ ویراں ہی تھا ، لیکن پھر بھی 
دل کے لُٹنے پہ ہوئی خوب ندامت مجھ کو

तू ने इतने दिए आज़ार-ए-मुहब्बत मुझको
अब न होती है तिरे रंगों पे हैरत मुझको

क़ुल्ज़ुम-ए-हुस्न से वो मौज-ए-बला-ख़ेज़ उठी
साहिल-ए-दिल पे नज़र आई क़ियामत मुझको

रत-जगे, सोज़-ए-जिगर, लज़्ज़त-ए-गिर्या-ज़ारी
दे गया तुर्फ़ा तहाइफ़ ग़म-ए-फुर्क़त मुझको

मेरे चेहरे पे कभी ऐसी उदासी तो ना थी
जाने क्या कर गई आलाम की शिद्दत मुझको

उन  के हर लुत्फ़ पे आई मुझे अल्लाह की याद
रास आई नहीं अस्नाम की उलफ़त मुझको

गो ये इक ख़ाना-ए-वीराँ ही था, लेकिन फिर भी
दिल के लुटने पे हुई ख़ूब नदामत मुझको



شکوۀ تغافل

اے نازِ نو بہار ! ترے منتظر ہیں گل اب کیا ہوا کہ باغ میں آتی نہیں ہے تو اے عندلیبِ گلشنِ جان و دل و نظر اب موسمِ بہار میں گاتی نہیں ہے تو اے...