آ گیا دیکھو چمن میں وہی انساں پھر سے
کہ براۓ ضدِ رسوائی وہ ناداں پھر سے ۔
ہاں ستم کش بھی ہے الفت کا وہ مارا بھی ہے
خوۓ ضبطِ دل و جاں سے ہے پشیماں پھر سے ۔
خلوت و بے کسی کے پہلو میں رہتا ہے کیوں ؟
بزم میں آ کے ہوا ہے وہ گریزاں پھر سے ۔
اچھے سے جان گیا ہے وہ بھی اس قتل گہ کو
کیوں کرے گا کوئی خود سے وہی پیماں پھر سے ۔
ہے سبق اس کو بھی ازبر نہ کوئی فکر کرو
دل پہ لے گا نہ وہ الفاظِ رقیباں پھر سے ۔
نشّا جتنا ہے اسے اردو حروفوں کا چڑھا
بے خبر کیا کرے گا نقشِ حسیناں پھر سے ۔
आ गया देखो चमन में वही इनसाँ फिर से
कि बरा-ए-ज़िद-ए-रुसवाई वह नादाँ फिर से
हाँ सितम कश भी है उल्फ़त का वह मारा भी है
ख़ू-ए-ज़ब्त-ए-दिल-ओ-जाँ से है पशेमाँ फिर से
ख़लवत-ओ-बे कसी के पहलू में रहता है क्यों
बज़्म में आ के हुआ है वह गुरेज़ाँ फिर से
अच्छे से जान गया है वह भी इस क़त्ल-गह को
क्यों करे गा कोई ख़ुद से वही पैमाँ फिर से
है सबक़ उस को भी अज़बर न कोई फ़िक्र करो
दिल पे न लेगा वह अल्फ़ाज़-ए-रक़ीबाँ फिर से
नश्शा जितना है उसे उर्दू हरूफों का चढ़ा
बे ख़बर क्या करे गा नक़्श-ए-हसीनाँ फिर से
हाँ सितम कश भी है उल्फ़त का वह मारा भी है
ख़ू-ए-ज़ब्त-ए-दिल-ओ-जाँ से है पशेमाँ फिर से
ख़लवत-ओ-बे कसी के पहलू में रहता है क्यों
बज़्म में आ के हुआ है वह गुरेज़ाँ फिर से
अच्छे से जान गया है वह भी इस क़त्ल-गह को
क्यों करे गा कोई ख़ुद से वही पैमाँ फिर से
है सबक़ उस को भी अज़बर न कोई फ़िक्र करो
दिल पे न लेगा वह अल्फ़ाज़-ए-रक़ीबाँ फिर से
नश्शा जितना है उसे उर्दू हरूफों का चढ़ा
बे ख़बर क्या करे गा नक़्श-ए-हसीनाँ फिर से