نالۂ عاشقِ برباد سے ڈر جاتے ہیں
کہ فرشتے مری فریاد سے ڈر جاتے ہیں
جن کو معلوم ہے الفت کے فسانوں کا مآل
وہ مرے عشق کی روداد سے ڈر جاتے ہیں
فرق بس اتنا ہے پیماں شکنوں اور ہم میں
ہم فغانِ دلِ ناشاد سے ڈر جاتے ہیں
واعظِ شہر کی تقریر کو سننے والے
قصرِ ایمان کی بنیاد سے ڈر جاتے ہیں
شیخ تو شیخ ہیں ، پیرانِ مغاں بھی سمرن
روشِ بندۂ آزاد سے ڈر جاتے ہیں
नाला-ए-आशिक़-ए-बर्बाद से डर जाते हैं
कि फ़रिश्ते मिरी फ़रियाद से डर जाते हैं
जिन को मालूम है उल्फ़त के फ़सानो का मआल
वह मिरे इश्क़ की रूदाद से डर जाते हैं
फ़र्क़ बस इतना है पैमाँ-शिकनों और हम में
हम फुग़ान-ए-दिल-ना-शाद से डर जाते हैं
वाइज़-ए-शहर की तक़रीर को सुनने वाले
क़स्र- ए- ईमान की बुनियाद से डर जाते हैं
शैख़ तो शैख़ हैं, पीरान-ए- मुग़ाँ भी सिमरन
रविश-ए-बंदा-ए-आज़ाद से डर जाते हैं