اور کیا حوصلہ دیں گے دلِ برباد کو ہم
آج شب تازہ کریں گے تری ہر یاد کو ہم
جب کبھی دیکھتے ہیں شوخئ صیاد کو ہم
قید کر لیتے ہیں اک طائرِ آزاد کو ہم
کس طرح آئے یقیں خسروِ دوراں پہ ہمیں
یاد رکھتے ہیں ابھی قصۂ فرہاد کو ہم
جب بھی تکتے ہیں ترے قامتِ زیبا کو ہم
بھول جاتے ہیں قد و قامتِ شمشاد کو ہم
اپنی جاں اپنا جگر اپنی نظر اپنا دل
نذر کرتے ہیں ترے حسنِ خدا داد کو ہم
بدگماں باغ سے اے بلبلِ نالاں مت ہو
رائگاں جانے نہ دیں گے تری فریاد کو ہم
اے خدا ! گر اِسی میں تیری خوشی ہے تو جلد
چھوڑ جائیں گے ترے گلشنِ آباد کو ہم
और क्या हौसला देंगे दिल-ए-बर्बाद को हम
आज शब ताज़ा करेंगे तिरी हर याद को हम
जब कभी देखते हैं शोख़ी-ए-सय्याद को हम
क़ैद कर लेते हैं इक ताइर-ए-आज़ाद को हम
किस तरह आए यक़ीं खुसरव-ए-दौराँ पे हमें
याद रखते हैं अभी क़िस्सा-ए-फ़रहाद को हम
जब भी तकते हैं तिरे क़ामत-ए-ज़ेबा को हम
भूल जाते हैं क़द-ओ-क़ामत-ए-शमशाद को हम
अपनी जाँ अपना जिगर अपनी नज़र अपना दिल
नज़्र करते हैं तिरे हुस्न-ए-ख़ुदादाद को हम
बद-गुमाँ बाग़ से ए बुलबुल-ए-नालाँ मत हो
राएगाँ जाने ना देंगे तिरी फ़र्याद को हम
ऐ ख़ुदा गर इसी में तेरी ख़ुशी है तो जल्द
छोड़ जाऐंगे तिरे गुलशन-ए-आबाद को हम
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